बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

अकबर महान था?" में अकबर के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करते हुए कुछ तथ्य सामने रखे हैं जो वास्तव में विचारणीय हैं.....
अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबरमहान) के नाम से भी जाना जाता है। जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उस
के वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा। अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे। रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था। कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका। वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा जाहिर की। अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और हमीदाबानो का विवाह हो गया। कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त, १५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा। हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया। अमरकोट में ही १५ अक्टूबर, १५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया। अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है। खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन्‌ १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन्‌ १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। सन्‌ १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को निकाल बाहर किया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। सन्‌ १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया – इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना पड़ा | जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा। दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना ! जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज ! पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग गया ! सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो गई ! हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों से घोप दिया लहलुहान किया ! इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर ! हेमू को मारकर दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया। अकबर जब अहमदाबाद आया था २ दिसंबर १५७३ को तो दो हज़ार (२,०००) विद्रोहियो के सिर काटकर उससे पिरामिण्ड बनाए थे ! जब किसी विद्रोही को दरबार मे लाया जाता था तब उसके सिर को काटकर उसमे भूसा भरकर तेल सुगंधी लगा कर प्रदर्शनी लगाता था "अकबर महान" बंगाल के विद्रोह मे ही अकेले उस महान अकबर ने करीब तीस हज़ार (३०,०००) लोगो को मौत के घाट उतारा था ! अकबर के दरबारी भगवनदास ने भी इन कुकृत्यों से तंग आकार स्वयं को ही चुरा-भोक कर अत्महत्या कर ली थी | चित्तौड़गढ़ के दुर्ग रक्षक सेनिकों के साथ जो यातनाएं और अत्याचार अकबर ने किए वो तो सबसे बर्बर और क्रूरतापूर्ण थे |
२४ फरवरी, १५६८ को अकबर चित्तौड़ के दुर्ग मे प्रवेश किया उसने कत्लेआम और लूट का आदेश दिया हमलावर पूरे दिन लूट और कत्लेआम करते रहे विध्वंस करते घूमते रहे एक घायल गोविंद श्याम के मंदिर के निकट पड़ा था तो अकबर ने उसे हाथी से कुचला ! आठ हजार योद्धा राजपूतो के साथ दुर्ग मे चालीस हज़ार (४०,०००) किसान भी थे जो देख रेख और मरम्मत के कार्य कर रहे थे ! कत्ले आम का आदेश तब तक नहीं लिया जब तक उसमे से तेतीस हज़ार (३३,०००) लोगो को नहीं मारा , अकबर के हाथो से ना तो मंदिर बचे और ना ही मीनारें ! अकबर ने जीतने युद्ध लड़े है उसमे उसने बीस लाख (२०,०००००) लोगो को मौत के घाट उतारा !अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो; इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य के मध्य में थी। कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारणथा। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ। सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला । अब कुछ प्रश्न अकबर की महानता के सम्बन्ध में विचारणीय हैं, जो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यही कहने पर विवश कर देंगे कि...कौन कहता है – अकबर महान था ????
(१.)यदि अगर अकबर से सभी प्रेम करते थे, आदर की दृष्टि से देखते थे तो इस प्रकार शीघ्रतापूर्वक बिना किसी उत्सव के उसे मृत्यु के तुरंत बाद क्यों दफनाया गया ?
(२.)जब अकबर अधिक पीता नहीं था तो उसे शराब पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
(३.)आखिर अकबर को इतिहास महान क्यों कहता है, जिसने हिन्दू नगरों को नष्ट किया ?
(४.)अगर फतेहपुरसीकरी का निर्माण अकबर ने कराया तो इस नाम का उल्लेख अकबर के पहले के इतिहासों में कैसे है ?
(५.)क्या अकबर जैसा शराबी, हिंसक, कामुक, साम्राज्यवादी बादशाह खुदा की बराबरी रखता है ?
(६.)क्या जानवरों को भी मुस्लिम बना देने वाला ऐसा धर्मांध अकबर महान है ?
(७.)क्या ऐसा अनपढ़ एवं मूर्खो जैसी बात करने वाला अकबर महान है ?
(८.)क्या अत्याचारी, लूट-खसोट करने वाला, जनता को लुटने वाला अकबर महान था ?
(९.)क्या ऐसा कामुक एवं पतित बादशाह अकबर महान है !
(१०.)क्या अपने पालनकर्ता बैरम खान को मरकर उसकी विधवा से विवाह कर लेने वाला अकबर महान था |
(११.)क्या औरत को अपनी कामवासना और हवस को शांत करने वाली वस्तुमात्र समझने वाला अकबर महान था | अकबर औरतो के लिबास मे मीना बाज़ार जाता था | मीना बाज़ार मे जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर के लिए हरम मे पटक देते|
(जय श्री मेरे राम)

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

क्या भारत की नयी पीड़ी ने कभी इनके वारे में भी सुना है...
क्या कोई प्रियंका चोपर, सुन्श्मिता...और क्या क्या...के सिवा..ये भी बनने की सोच रहा है आज कल...नहीं ....

बिना जीजाबाई के शिवाजी नहीं बन सकते....नारी जागेगी भारत जागेगा 

5 सितम्बर 1986 को आधुनिक भारत की एक विरांगना जिसने इस्लामिक आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों को जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
भारत के कितने नवयुवक और नवयुवतियां उसका नाम जानते है।
कैटरिना कैफ, करीना कपूर, प्रियंका चैपड़ा, दीपिका पादुकोड़, विद्य
ाबालन................

नीरजा भनोत

नहीं सुना न ये नाम। मैं बताता हूँ इस महान विरांगना के बारे में। 7 सितम्बर 1964 को चंड़ीगढ़ के हरीश भनोत जी के यहाँ जब एक बच्ची का जन्म हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा। बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।
नीरजा ने अपनी वो इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी। 5 सितम्बर 1986 की वो घड़ी आ गयी थी जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी। पैन एम 73 विमान करांची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियां ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा।
जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा।
नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।
उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ।
प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया।
नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये।
योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे।
वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी।
कि अचानक बचा हुआ चैथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ।
नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहाँ वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली।
नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चैथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके। नीरजा भी अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी। किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी।
उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया।
नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम विरांगना है। ऐसी विरागना को मैं कोटि-कोटि नमन करता हूँ। (2004 में नीरजा भनोत पर टिकट भी जारी हो चुका है।

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

सियार भेडिये से डर सकती सिंघो की औलाद नहीं


हम डरते नहीं हड्बम्बो से विष्फोटक जल पोतो से
हम डरते है ताशकंद शिमला जैसे समझोतों से 
सियार भेडिये से डर सकती सिंघो की औलाद नहीं
भरदवंश के इस पानी की है तुमको पहचान नहीं 
आईटम बम बना कर के तुम किस्मत पे इतना फूल गये
1965,71,99 के युद्धों को शायद भूल गये
तुम याद करो अब्दुल हम्मिद ने पेटन टेंक जला डाला
हिन्दुस्तानी नेटो ने अमरीकी जेट जला डाला
तुम याद करो गाजी का बेडा झटके में ही डूबा दिया
ढाका के जनरल नियाजी को याद दूध छटी का दिला दिया
तुम याद करो उन नबे हज़ार बंदी पाक जवानों को
तुम याद करो शिमला समझोता इंदिरा के एहसानों को
ऐ दुश्मन तू कान खोल के सुन ले
अबकी जंग सुनी तो सुन ले
नाम निशान नहीं होगा कश्मीर तो होगा लेकिन पकिस्तान नहीं होगा
लाल कर दिया लहू से तुमने श्रीनगर की घाटी को
किस गफलत पर छेड़ रहे तुम सोयी हल्दीघाटी को
जहर पिलाकर मजहब का इन कश्मीरी परवानो को
भय और लालच दे कर तुम भेज रहे नादानों को
खुले प्रशिक्षण खुले शस्त्र है खुली हुई शैतानी है
सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है
बहुत हो चुकी मक्कारी बस बहुत हो चूका हस्ताक्षेप
समझा दो उनको वरना भभक उठेगा पूरा देश
देश अगर हो गया खड़ा तो त्राहि त्राहि मच जाएगी
पकिस्तान के हर कोने में महाप्रलय आ जाएगी
क्या होगा अंजाम तुम्हे इसका अनुमान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पकिस्तान नहीं होगा 
ये आवाज ये एटम बम पर हिम्मत कौन दिखायेगा
इन्हें चलाने को क्या बोलो बाप तुम्हारा आएगा
अब की चिंता मत कर चेहरे को खोल बदल देंगे 
इतिहास की क्या हस्ती है पूरा भूगोल बदल देंगे
धारा हर मोड़ बदल कर लाहोर से गुजरेगी गंगा
इस्लामाबाद की छाती पर लहराएगा भारत का झंडा
रावलपिंडी और कराची तक सबकुछ गैरत हो जायगा
सिन्धु नदी के आर पार पूरा भारत हो जायेगा
फिर सदियों सदियों तक जिन्ना जैसा शैतान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

हर हर महादेव 

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

विजयादशमी


सभी मित्रो को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाये
आज धू धू कर अपना अपना अहंकार जलाना
आज हो भूमि पुत्र तु पुनः निर्विकार हो जाना
कर देना शत्रु रुपी तु ईर्ष्या का आज मर्दन
हे महाकाल के भक्त तु ले आना भूमि मे परिवर्तन
लोभ को अपने ओझल कर देना सबसे प्रीत निभाना
देख काम और क्रोध के विकृत जाल मेँ ना फँस जाना
तु महान राम का महान पुत्र है मन का रावण जलाना
बैर किसी से ना रखना सबसे व्यवहार निभाना
तेरा स्वर भू से अंबर तक गूँजे यह कहते कहते
सदा सत्य ही विजय रहा है सत्यमेव ही जयते
किँतु रावण जिनके मन मे उनको मैँ चेताता हूँ
यह उनको अंतिम चेतावनी साथ ही ये बतलाता हूँ
राम जी के रणबाकुरोँ से तुम रावण ना टकराना
आज धू धू कर अपना अपना अहंकार जलाना


जय हिन्द जय भारत जय महाकाल जय हिंदुत्व

ताजमहल का पूरा सच



कृपया इसे पढ़ें .........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस ध
ोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,

=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....

=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------

="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...

और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...

==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......


प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......

==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????


राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....


प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....

ज़रा सोचिये....!!!!!!

कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????


आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,

फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

सत्य

एक राजा ने एक महात्मा से कहा – “कृपया मुझे सत्य के बारे में बताइये. इसकी प्रतीति कैसी है? इसे प्राप्त करने के बाद की अनुभूति क्या होती है?”

राजा के प्रश्न के उत्तर में महात्मा ने राजा से कहा – “ठीक है. पहले आप मुझे एक बात बताइए, आप किसी ऐस
े व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझायेंगे जिसने पहले कभी आम नहीं खाया हो?”

राजा सोच-विचार में डूब गया. उसने हर तरह की तरकीब सोची पर वह यह नहीं बता सका कि उस व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझाया जाय जिसने कभी आम नहीं खाया हो.

हताश होकर उसने महात्मा से ही कहा – “मुझे नहीं मालूम, आप ही बता दीजिये”.

महात्मा ने पास ही रखी थाली से एक आम उठाया और उसे राजा को देते हुए कहा – “यह बहुत मीठा है. इसे खाकर देखो”.


जय हिन्द जय भारत जय महाकाल जय हिंदुत्व
युवा ही दिव्य भारत का निर्माण कर सकता है। यह तभी संभव होगा जब युवा अपनी संस्कृति को समझेगा। यह साधु संतो की धरती है यहां के वातावरण में प्रेम की धारा बहती है। लोग अपने संस्कार को भूल दूसरों की कुसंस्कृति को अपना रहे हैं। जो काफी दु:खद है।एक
 बेटा नौकरी की तलाश में महानगर गया। वहां से कुछ दिन बाद लौटा तो वह वहीं की भाषा व संस्कृति के बारे में बाते करता था। मानो वह अपनी भाषा व संस्कृति को भूल सा गया हो। भिंडी को देख नाक भौं सिकोड़ते हुए कहता है जहां मैं रहता हूं वहां तो काफी बड़ी-बड़ी भिंडी होती है। यह तो कुछ भी नहीं। यह देख पिता उसे एक जगह ले जाता है और तरबूज को दिखाकर कहता है इसे पहचानता है यह नींबू है अभी कच्चा है पकेगा तो तोड़ लेना। यह सुन बेटे को अपनी भूल का एहसास हुआ।कहीं भी जाते हो तो संस्कार ही तुम्हारा पहचान होता है। वहीं तुम्हें लाखों की भीड़ से अलग करता है। तुम अपने साथ शहर,राज्य व देश की पहचान लेकर जाते हो। शरीर का तो एग्रीमेंट है। पुत्र का बहु के साथ, बेटी का दामाद के साथ, हिन्दू का आग एवं मुस्लिम के शरीर का एग्रीमेंट मिट्टी के साथ है।नशे से दूर रहो। यह तुम्हारे जीवन को खत्म कर देगा। फिल्म, टीवी आदि में अभिनेता आदि का अनुकरण कर तुम नशे के आदि होते हो। क्या बीमारी ग्रसित होने पर वह अभिनेता तुम्हारे इलाज के लिए आता है। फिर क्यों तुम चकाचौंध के पीछे भागते हो। मन को शांत बनाओ। सबसे प्रेम करो और सबको प्रेम दो। मानव जीवन मिला है इसका सदुपयोग करो।

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल