आज यु ही बैठा कुछ सोच रहा था
इंसान इस रफ़्तार के युग में कितना आगे निकल गया?
और पीछे छोड़ आया सब कुछ
शहरीकरण के इस दौर में गाँव को तो सब भूल ही गये
गाँव में रहने वाले भी शहर की चकाचोंध में बहुत कुछ तलाशते है
मैं भी गाँव का रहने वाला था
एक सीमित सा संसार
बहुत अच्छा लगता है सब सोचकर मुझे गर्व होता है की मैं गाँव की प्रष्ठ भूमि पर पैदा हुआ हु
मुझे आज भी याद है वो दिन जब हम स्कूल में पढ़ते थे
स्कूल जाने का समय होता था सुबह 10 :00 बजे
उठकर पहले चाय की बड़ी सी पतीली में चाय पीना फिर स्कूल से मिला होमवर्क करना
होमवर्क करते ही कुछ काम तैयार मिलते थे जैसे भैसों को स्नान कराना,उन्हें पानी पिलाना,चारा डालना,बैलो को गाड़े पर जोड़ कर खेत छोड़ कर आना
बहुत मजेदार जिन्दगी थी आज जब कभी उन दिनों का स्मरण हो आता ही आँखे नाम हुए बिना नहीं रहती।
रात को देर तक खेलना,सुबह देर तक सोना रोजमर्रा का नियम था बिमारी क्या होती है देखि ही नहीं कभी ।अगर हलकी खांसी जुकाम हो जाता तो दादी के द्वारा तैयार किया हुआ गाढ़ा जबरदस्ती पीना।
अब मैं भी शहर में रहता हु पर लगता है जैसे जिन्दगी से जीने का रस कंही चला गया ।
न खेलने में मजा आता है न दोस्तों के साथ फिल्म देखने में ।
गाँव में अधूरे सामान के साथ खेलना भी अच्छा लगता था पर अब तो।
शहर में हर और सब कुछ है पर पता नहीं कंही कुछ कमी सी लगती है ?
जीने का मजा जो गाँव में आता था आज कंही खो गया है ?
या सच में शहर में जिन्दगी नीरस होती है ?
लगता है एक ऐसी दुनिया में आ गये जहा सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है ।
मैंने आज एक फैसला लिया है गाँव वापस जाने का शायद किसी को पसंद ना आये
पर मुझे नहीं लगता की किसी को ऐसी नीरस जिन्दगी से प्यार होगा
जय हिन्द जय भारत
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