युवा ही दिव्य भारत का निर्माण कर सकता है। यह तभी संभव होगा जब युवा अपनी संस्कृति को समझेगा। यह साधु संतो की धरती है यहां के वातावरण में प्रेम की धारा बहती है। लोग अपने संस्कार को भूल दूसरों की कुसंस्कृति को अपना रहे हैं। जो काफी दु:खद है।एक
बेटा नौकरी की तलाश में महानगर गया। वहां से कुछ दिन बाद लौटा तो वह वहीं की भाषा व संस्कृति के बारे में बाते करता था। मानो वह अपनी भाषा व संस्कृति को भूल सा गया हो। भिंडी को देख नाक भौं सिकोड़ते हुए कहता है जहां मैं रहता हूं वहां तो काफी बड़ी-बड़ी भिंडी होती है। यह तो कुछ भी नहीं। यह देख पिता उसे एक जगह ले जाता है और तरबूज को दिखाकर कहता है इसे पहचानता है यह नींबू है अभी कच्चा है पकेगा तो तोड़ लेना। यह सुन बेटे को अपनी भूल का एहसास हुआ।कहीं भी जाते हो तो संस्कार ही तुम्हारा पहचान होता है। वहीं तुम्हें लाखों की भीड़ से अलग करता है। तुम अपने साथ शहर,राज्य व देश की पहचान लेकर जाते हो। शरीर का तो एग्रीमेंट है। पुत्र का बहु के साथ, बेटी का दामाद के साथ, हिन्दू का आग एवं मुस्लिम के शरीर का एग्रीमेंट मिट्टी के साथ है।नशे से दूर रहो। यह तुम्हारे जीवन को खत्म कर देगा। फिल्म, टीवी आदि में अभिनेता आदि का अनुकरण कर तुम नशे के आदि होते हो। क्या बीमारी ग्रसित होने पर वह अभिनेता तुम्हारे इलाज के लिए आता है। फिर क्यों तुम चकाचौंध के पीछे भागते हो। मन को शांत बनाओ। सबसे प्रेम करो और सबको प्रेम दो। मानव जीवन मिला है इसका सदुपयोग करो।
जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल
जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल
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