शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

श्री मदभगवद गीता के सातवे अध्याय का बीसवां श्लोक पढ़ा और आपको भी बताता हु क्या लिखा है उसमे देखिये लिखा है 



कामैस्तेस्तेह्रर्ज्ञाना: प्रप्धय्नते अन्यदेवता:।

तं तं नियमास्थाय प्रक्रत्या नियता स्वया ।

अर्थात उन उन भोगो द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चूका है वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस उस नियम को धारण करके अन्य देवताओ को भजते है या पूजते है 
(इसमें मूर्ति पूजा के बारे में कुछ नहीं लिखा )
अब आपने सिर्फ यही बताया मैं आपको इसका अगला श्लोक यानि सातवे अध्याय का इकिस्वां श्लोक बताता हु देखिये 




यो यो यां यां तनु भक्त श्रध्याचितुर्मिच्छ्ती ।
तस्य तस्या चलां श्रधां तामेव विद्य्ध्यामाहम।।

अर्थात जो जो सकाम भक्त जिस जिस देवता के स्वरुप को श्रधा से पूजना चाहता है उस उस भक्त की श्रधा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हु 


kkvermaji7@gmail.com

ये नहीं कहा की तुम अपनी पूजा पद्धति में कोई बदलाव करो ये कहा है की मैं तुम्हारी मदद करूँगा तुम 
भक्ति रूपी मार्ग पर चलते रहने का अपना काम करते जाओ 

और हो सके तो अपना पता लिख दो मैं आपके पास श्री गीता की एक प्रति भिजवा देता हु आप पढना मन को शांति मिलेगी और 
भगवान में विसवास पैदा होगा 

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व

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