बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

अकबर महान था?" में अकबर के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करते हुए कुछ तथ्य सामने रखे हैं जो वास्तव में विचारणीय हैं.....
अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबरमहान) के नाम से भी जाना जाता है। जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उस
के वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा। अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे। रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था। कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका। वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा जाहिर की। अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और हमीदाबानो का विवाह हो गया। कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त, १५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा। हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया। अमरकोट में ही १५ अक्टूबर, १५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया। अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है। खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन्‌ १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन्‌ १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। सन्‌ १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को निकाल बाहर किया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। सन्‌ १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया – इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना पड़ा | जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा। दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना ! जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज ! पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग गया ! सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो गई ! हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों से घोप दिया लहलुहान किया ! इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर ! हेमू को मारकर दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया। अकबर जब अहमदाबाद आया था २ दिसंबर १५७३ को तो दो हज़ार (२,०००) विद्रोहियो के सिर काटकर उससे पिरामिण्ड बनाए थे ! जब किसी विद्रोही को दरबार मे लाया जाता था तब उसके सिर को काटकर उसमे भूसा भरकर तेल सुगंधी लगा कर प्रदर्शनी लगाता था "अकबर महान" बंगाल के विद्रोह मे ही अकेले उस महान अकबर ने करीब तीस हज़ार (३०,०००) लोगो को मौत के घाट उतारा था ! अकबर के दरबारी भगवनदास ने भी इन कुकृत्यों से तंग आकार स्वयं को ही चुरा-भोक कर अत्महत्या कर ली थी | चित्तौड़गढ़ के दुर्ग रक्षक सेनिकों के साथ जो यातनाएं और अत्याचार अकबर ने किए वो तो सबसे बर्बर और क्रूरतापूर्ण थे |
२४ फरवरी, १५६८ को अकबर चित्तौड़ के दुर्ग मे प्रवेश किया उसने कत्लेआम और लूट का आदेश दिया हमलावर पूरे दिन लूट और कत्लेआम करते रहे विध्वंस करते घूमते रहे एक घायल गोविंद श्याम के मंदिर के निकट पड़ा था तो अकबर ने उसे हाथी से कुचला ! आठ हजार योद्धा राजपूतो के साथ दुर्ग मे चालीस हज़ार (४०,०००) किसान भी थे जो देख रेख और मरम्मत के कार्य कर रहे थे ! कत्ले आम का आदेश तब तक नहीं लिया जब तक उसमे से तेतीस हज़ार (३३,०००) लोगो को नहीं मारा , अकबर के हाथो से ना तो मंदिर बचे और ना ही मीनारें ! अकबर ने जीतने युद्ध लड़े है उसमे उसने बीस लाख (२०,०००००) लोगो को मौत के घाट उतारा !अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो; इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य के मध्य में थी। कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारणथा। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ। सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला । अब कुछ प्रश्न अकबर की महानता के सम्बन्ध में विचारणीय हैं, जो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यही कहने पर विवश कर देंगे कि...कौन कहता है – अकबर महान था ????
(१.)यदि अगर अकबर से सभी प्रेम करते थे, आदर की दृष्टि से देखते थे तो इस प्रकार शीघ्रतापूर्वक बिना किसी उत्सव के उसे मृत्यु के तुरंत बाद क्यों दफनाया गया ?
(२.)जब अकबर अधिक पीता नहीं था तो उसे शराब पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
(३.)आखिर अकबर को इतिहास महान क्यों कहता है, जिसने हिन्दू नगरों को नष्ट किया ?
(४.)अगर फतेहपुरसीकरी का निर्माण अकबर ने कराया तो इस नाम का उल्लेख अकबर के पहले के इतिहासों में कैसे है ?
(५.)क्या अकबर जैसा शराबी, हिंसक, कामुक, साम्राज्यवादी बादशाह खुदा की बराबरी रखता है ?
(६.)क्या जानवरों को भी मुस्लिम बना देने वाला ऐसा धर्मांध अकबर महान है ?
(७.)क्या ऐसा अनपढ़ एवं मूर्खो जैसी बात करने वाला अकबर महान है ?
(८.)क्या अत्याचारी, लूट-खसोट करने वाला, जनता को लुटने वाला अकबर महान था ?
(९.)क्या ऐसा कामुक एवं पतित बादशाह अकबर महान है !
(१०.)क्या अपने पालनकर्ता बैरम खान को मरकर उसकी विधवा से विवाह कर लेने वाला अकबर महान था |
(११.)क्या औरत को अपनी कामवासना और हवस को शांत करने वाली वस्तुमात्र समझने वाला अकबर महान था | अकबर औरतो के लिबास मे मीना बाज़ार जाता था | मीना बाज़ार मे जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर के लिए हरम मे पटक देते|
(जय श्री मेरे राम)

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

क्या भारत की नयी पीड़ी ने कभी इनके वारे में भी सुना है...
क्या कोई प्रियंका चोपर, सुन्श्मिता...और क्या क्या...के सिवा..ये भी बनने की सोच रहा है आज कल...नहीं ....

बिना जीजाबाई के शिवाजी नहीं बन सकते....नारी जागेगी भारत जागेगा 

5 सितम्बर 1986 को आधुनिक भारत की एक विरांगना जिसने इस्लामिक आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों को जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
भारत के कितने नवयुवक और नवयुवतियां उसका नाम जानते है।
कैटरिना कैफ, करीना कपूर, प्रियंका चैपड़ा, दीपिका पादुकोड़, विद्य
ाबालन................

नीरजा भनोत

नहीं सुना न ये नाम। मैं बताता हूँ इस महान विरांगना के बारे में। 7 सितम्बर 1964 को चंड़ीगढ़ के हरीश भनोत जी के यहाँ जब एक बच्ची का जन्म हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा। बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।
नीरजा ने अपनी वो इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी। 5 सितम्बर 1986 की वो घड़ी आ गयी थी जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी। पैन एम 73 विमान करांची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियां ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा।
जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा।
नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।
उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ।
प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया।
नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये।
योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे।
वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी।
कि अचानक बचा हुआ चैथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ।
नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहाँ वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली।
नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चैथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके। नीरजा भी अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी। किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी।
उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया।
नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम विरांगना है। ऐसी विरागना को मैं कोटि-कोटि नमन करता हूँ। (2004 में नीरजा भनोत पर टिकट भी जारी हो चुका है।

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

सियार भेडिये से डर सकती सिंघो की औलाद नहीं


हम डरते नहीं हड्बम्बो से विष्फोटक जल पोतो से
हम डरते है ताशकंद शिमला जैसे समझोतों से 
सियार भेडिये से डर सकती सिंघो की औलाद नहीं
भरदवंश के इस पानी की है तुमको पहचान नहीं 
आईटम बम बना कर के तुम किस्मत पे इतना फूल गये
1965,71,99 के युद्धों को शायद भूल गये
तुम याद करो अब्दुल हम्मिद ने पेटन टेंक जला डाला
हिन्दुस्तानी नेटो ने अमरीकी जेट जला डाला
तुम याद करो गाजी का बेडा झटके में ही डूबा दिया
ढाका के जनरल नियाजी को याद दूध छटी का दिला दिया
तुम याद करो उन नबे हज़ार बंदी पाक जवानों को
तुम याद करो शिमला समझोता इंदिरा के एहसानों को
ऐ दुश्मन तू कान खोल के सुन ले
अबकी जंग सुनी तो सुन ले
नाम निशान नहीं होगा कश्मीर तो होगा लेकिन पकिस्तान नहीं होगा
लाल कर दिया लहू से तुमने श्रीनगर की घाटी को
किस गफलत पर छेड़ रहे तुम सोयी हल्दीघाटी को
जहर पिलाकर मजहब का इन कश्मीरी परवानो को
भय और लालच दे कर तुम भेज रहे नादानों को
खुले प्रशिक्षण खुले शस्त्र है खुली हुई शैतानी है
सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है
बहुत हो चुकी मक्कारी बस बहुत हो चूका हस्ताक्षेप
समझा दो उनको वरना भभक उठेगा पूरा देश
देश अगर हो गया खड़ा तो त्राहि त्राहि मच जाएगी
पकिस्तान के हर कोने में महाप्रलय आ जाएगी
क्या होगा अंजाम तुम्हे इसका अनुमान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पकिस्तान नहीं होगा 
ये आवाज ये एटम बम पर हिम्मत कौन दिखायेगा
इन्हें चलाने को क्या बोलो बाप तुम्हारा आएगा
अब की चिंता मत कर चेहरे को खोल बदल देंगे 
इतिहास की क्या हस्ती है पूरा भूगोल बदल देंगे
धारा हर मोड़ बदल कर लाहोर से गुजरेगी गंगा
इस्लामाबाद की छाती पर लहराएगा भारत का झंडा
रावलपिंडी और कराची तक सबकुछ गैरत हो जायगा
सिन्धु नदी के आर पार पूरा भारत हो जायेगा
फिर सदियों सदियों तक जिन्ना जैसा शैतान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

हर हर महादेव 

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

विजयादशमी


सभी मित्रो को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाये
आज धू धू कर अपना अपना अहंकार जलाना
आज हो भूमि पुत्र तु पुनः निर्विकार हो जाना
कर देना शत्रु रुपी तु ईर्ष्या का आज मर्दन
हे महाकाल के भक्त तु ले आना भूमि मे परिवर्तन
लोभ को अपने ओझल कर देना सबसे प्रीत निभाना
देख काम और क्रोध के विकृत जाल मेँ ना फँस जाना
तु महान राम का महान पुत्र है मन का रावण जलाना
बैर किसी से ना रखना सबसे व्यवहार निभाना
तेरा स्वर भू से अंबर तक गूँजे यह कहते कहते
सदा सत्य ही विजय रहा है सत्यमेव ही जयते
किँतु रावण जिनके मन मे उनको मैँ चेताता हूँ
यह उनको अंतिम चेतावनी साथ ही ये बतलाता हूँ
राम जी के रणबाकुरोँ से तुम रावण ना टकराना
आज धू धू कर अपना अपना अहंकार जलाना


जय हिन्द जय भारत जय महाकाल जय हिंदुत्व

ताजमहल का पूरा सच



कृपया इसे पढ़ें .........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस ध
ोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,

=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....

=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------

="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...

और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...

==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......


प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......

==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????


राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....


प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....

ज़रा सोचिये....!!!!!!

कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????


आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,

फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

सत्य

एक राजा ने एक महात्मा से कहा – “कृपया मुझे सत्य के बारे में बताइये. इसकी प्रतीति कैसी है? इसे प्राप्त करने के बाद की अनुभूति क्या होती है?”

राजा के प्रश्न के उत्तर में महात्मा ने राजा से कहा – “ठीक है. पहले आप मुझे एक बात बताइए, आप किसी ऐस
े व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझायेंगे जिसने पहले कभी आम नहीं खाया हो?”

राजा सोच-विचार में डूब गया. उसने हर तरह की तरकीब सोची पर वह यह नहीं बता सका कि उस व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझाया जाय जिसने कभी आम नहीं खाया हो.

हताश होकर उसने महात्मा से ही कहा – “मुझे नहीं मालूम, आप ही बता दीजिये”.

महात्मा ने पास ही रखी थाली से एक आम उठाया और उसे राजा को देते हुए कहा – “यह बहुत मीठा है. इसे खाकर देखो”.


जय हिन्द जय भारत जय महाकाल जय हिंदुत्व
युवा ही दिव्य भारत का निर्माण कर सकता है। यह तभी संभव होगा जब युवा अपनी संस्कृति को समझेगा। यह साधु संतो की धरती है यहां के वातावरण में प्रेम की धारा बहती है। लोग अपने संस्कार को भूल दूसरों की कुसंस्कृति को अपना रहे हैं। जो काफी दु:खद है।एक
 बेटा नौकरी की तलाश में महानगर गया। वहां से कुछ दिन बाद लौटा तो वह वहीं की भाषा व संस्कृति के बारे में बाते करता था। मानो वह अपनी भाषा व संस्कृति को भूल सा गया हो। भिंडी को देख नाक भौं सिकोड़ते हुए कहता है जहां मैं रहता हूं वहां तो काफी बड़ी-बड़ी भिंडी होती है। यह तो कुछ भी नहीं। यह देख पिता उसे एक जगह ले जाता है और तरबूज को दिखाकर कहता है इसे पहचानता है यह नींबू है अभी कच्चा है पकेगा तो तोड़ लेना। यह सुन बेटे को अपनी भूल का एहसास हुआ।कहीं भी जाते हो तो संस्कार ही तुम्हारा पहचान होता है। वहीं तुम्हें लाखों की भीड़ से अलग करता है। तुम अपने साथ शहर,राज्य व देश की पहचान लेकर जाते हो। शरीर का तो एग्रीमेंट है। पुत्र का बहु के साथ, बेटी का दामाद के साथ, हिन्दू का आग एवं मुस्लिम के शरीर का एग्रीमेंट मिट्टी के साथ है।नशे से दूर रहो। यह तुम्हारे जीवन को खत्म कर देगा। फिल्म, टीवी आदि में अभिनेता आदि का अनुकरण कर तुम नशे के आदि होते हो। क्या बीमारी ग्रसित होने पर वह अभिनेता तुम्हारे इलाज के लिए आता है। फिर क्यों तुम चकाचौंध के पीछे भागते हो। मन को शांत बनाओ। सबसे प्रेम करो और सबको प्रेम दो। मानव जीवन मिला है इसका सदुपयोग करो।

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

श्री मदभगवद गीता के सातवे अध्याय का बीसवां श्लोक पढ़ा और आपको भी बताता हु क्या लिखा है उसमे देखिये लिखा है 



कामैस्तेस्तेह्रर्ज्ञाना: प्रप्धय्नते अन्यदेवता:।

तं तं नियमास्थाय प्रक्रत्या नियता स्वया ।

अर्थात उन उन भोगो द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चूका है वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस उस नियम को धारण करके अन्य देवताओ को भजते है या पूजते है 
(इसमें मूर्ति पूजा के बारे में कुछ नहीं लिखा )
अब आपने सिर्फ यही बताया मैं आपको इसका अगला श्लोक यानि सातवे अध्याय का इकिस्वां श्लोक बताता हु देखिये 




यो यो यां यां तनु भक्त श्रध्याचितुर्मिच्छ्ती ।
तस्य तस्या चलां श्रधां तामेव विद्य्ध्यामाहम।।

अर्थात जो जो सकाम भक्त जिस जिस देवता के स्वरुप को श्रधा से पूजना चाहता है उस उस भक्त की श्रधा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हु 


kkvermaji7@gmail.com

ये नहीं कहा की तुम अपनी पूजा पद्धति में कोई बदलाव करो ये कहा है की मैं तुम्हारी मदद करूँगा तुम 
भक्ति रूपी मार्ग पर चलते रहने का अपना काम करते जाओ 

और हो सके तो अपना पता लिख दो मैं आपके पास श्री गीता की एक प्रति भिजवा देता हु आप पढना मन को शांति मिलेगी और 
भगवान में विसवास पैदा होगा 

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012


आज यु ही बैठा कुछ सोच रहा था
इंसान इस रफ़्तार के युग में कितना आगे निकल गया?
और पीछे छोड़ आया सब कुछ
शहरीकरण के इस दौर में गाँव को तो सब भूल ही गये
गाँव में रहने वाले भी शहर की चकाचोंध में बहुत कुछ तलाशते है

मैं भी गाँव का रहने वाला था
एक सीमित सा संसार
बहुत अच्छा लगता है सब सोचकर मुझे गर्व होता है की मैं गाँव की प्रष्ठ भूमि पर पैदा हुआ हु
मुझे आज भी याद है वो दिन जब हम स्कूल में पढ़ते थे
स्कूल जाने का समय होता था सुबह 10 :00 बजे
उठकर पहले चाय की बड़ी सी पतीली में चाय पीना फिर स्कूल से मिला होमवर्क करना
होमवर्क करते ही कुछ काम तैयार मिलते थे जैसे भैसों को स्नान कराना,उन्हें पानी पिलाना,चारा डालना,बैलो को गाड़े पर जोड़ कर खेत छोड़ कर आना
बहुत मजेदार जिन्दगी थी आज जब कभी उन दिनों का स्मरण हो आता ही आँखे नाम हुए बिना नहीं रहती।
रात को देर तक खेलना,सुबह देर तक सोना रोजमर्रा का नियम था बिमारी क्या होती है देखि ही नहीं कभी ।अगर हलकी खांसी जुकाम हो जाता तो दादी के द्वारा तैयार किया हुआ गाढ़ा जबरदस्ती पीना।
अब मैं भी शहर में रहता हु पर लगता है जैसे जिन्दगी से जीने का रस कंही चला गया ।
न खेलने में मजा आता है न दोस्तों के साथ फिल्म देखने में ।
गाँव में अधूरे सामान के साथ खेलना भी अच्छा लगता था पर अब तो।
शहर में हर और सब कुछ है पर पता नहीं कंही कुछ कमी सी लगती है ?
जीने का मजा जो गाँव में आता था आज कंही खो गया है ?
या सच में शहर में जिन्दगी नीरस होती है ?
लगता है एक ऐसी दुनिया में आ गये जहा सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है ।
मैंने आज एक फैसला लिया है गाँव वापस जाने का शायद किसी को पसंद ना आये
पर मुझे नहीं लगता की किसी को ऐसी नीरस जिन्दगी से प्यार होगा


जय हिन्द जय भारत

बुधवार, 17 अक्टूबर 2012


.............................................मादक पदार्थ........................................................

 मनुष्य जाती को अधिकाधिक हानि यदि किसीने की है तो वे है मादक पदार्थ।उनसे मनुष्य के धन,आरोग्यता और जीवन का नाश होता है।मादक पदार्थो का सेवन करने से भावी संतान दिनोदिन निर्बल तथा निस्तेज बनती जा रही है।
                               भारत में लाखो लोगो को भरपेट अन्न नहीं मिलता।भारत माता के कितने ही लाल अन्न के आभाव में अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है।जहा भारत की माताएं और बहने रोटी के टुकड़े के लिए लाचार हो जाती है वहा मादक द्रव्यों का प्रचार हो,इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है ?
                       मादक द्रव्यों ने देश और विदेश के लोगो को अपार नुकसान पंहुचाया है।अति प्राचीन काल से गौरवशाली भारतवर्ष में आज मादक पदार्थो का प्रचार प्रसार बहुत भयंकर है।आठ -दस वर्ष के बच्चे भी बीडी सिगरेट पीते हुए दिखाई देते है।यह द्रश्य मर्मान्तक तथा शर्मनाक है।छोटी उम्र से ही जो बच्चे मादक पदार्थ,चाय,बीडी,मदिरा,गांजा,तम्बाकू जैसी चीजो का सेवन करते है फिर युवान होने के बजाय बचपन के बाद सीधे व्रधत्व को प्राप्त होते है।ऐसे दुर्बल बच्चे देश की क्या सेवा करेंगे?वे तो अपनी जीवन यात्रा भी ठीक से नहीं चला पाएंगे।
                                     भारत जैसे गरीब देश में प्रतिदिन मजदूरी करके जीविका चलाने वाले लोग अनपे अल्प आय का अधिकाश तो शराब या गांजे में खर्च कर डालते है तो फिर वे अपने बीवी बच्चो का पालन किस प्रकार कर पाएंगे ?
               मादक पदार्थो का सेवन करने वाले लोग जीते जी अपने ही खर्च से अपनी अर्थी बना रहे है।नशेबाज आदमी अधिक समय जे नहीं सकता।नशीली चीजो का इस्तेमाल करने की आदत बहुत ही ख़राब है।दुर्बल मन के लोगो को यह आदत छोड़ना मुश्किल है।यह महारोग समय पाकर असाध्य हो जाता है

हम जल्द ही इससे छुटकारा पाने का उपाय बतायंगे

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012


भारत ने अपने आखिरी 100000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।

जब कई संस्कृतियों में 5000 साल पहले घुमंतू वनवासी थे, तब भारतीयों ने सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।

भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इं‍डस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्‍यताएं निवास करती थी। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा।

ईरान से आए आक्रमणकारियों ने सिंधु को हिंदु की तरह प्रयोग किया। ‘हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।

शतरंज की खोज भारत में की गई थी।

बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्‍ययन भारत में ही आरंभ हुआ था।

‘स्‍थान मूल्‍य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था।

विश्‍व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्‍वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़ों से बने हैं। यह भव्‍य मंदिर राजाराज चोल के राज्‍य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था।

भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्‍व का सातवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्‍यताओं में से एक है।

सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्‍दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्‍व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्‍तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्‍छे काम लोगों को स्‍वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्‍म के चक्र में डाल देते हैं।

दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्‍थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।

भारत में विश्‍व भर से सबसे अधिक संख्‍या में डाक खाने स्थित हैं।

भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा नियोक्ता है। यह दस लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।

विश्‍व का सबसे प्रथम विश्‍वविद्यालय 700 बी सी में तक्षशिला में स्‍थापित किया गया था। इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्‍ययन करते थे। नालंदा विश्‍वविद्यालय चौथी शताब्‍दी में स्‍थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।

आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्‍सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक में 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।

भारत 17वीं शताब्‍दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्‍य आने से पहले सबसे सम्‍पन्‍न देश था। क्रिस्‍टोफर कोलम्‍बस भारत की सम्‍पन्‍नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।

नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्‍कृ‍त शब्‍द नव गति से उत्‍पन्‍न हुआ है। शब्‍द नौ सेना भी संस्‍कृत शब्‍द नोउ से हुआ।

भास्‍कराचार्य ने खगोल शास्‍त्र के कई सौ साल पहले पृथ्‍वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्‍वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।

भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ‘पाई’ का मूल्‍य ज्ञात किया गया था और उन्‍होंने जिस संकल्‍पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं। उन्‍होंने इसकी खोज छठवीं शताब्‍दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।

जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल
 

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

अपनी इस कड़ी के जरिये मैंने भारत कि एक महान विभूति क् बारे में बताना चाह है.....उम्मीद है आपको यह पोस्ट पसंद आएगा......

अभिमन्यु महाभारत के महत्त्वपूर्ण पात्र थे जो पाँच पांडवों में से अर्जुन के पुत्र थे। उनका छल द्वारा कारुणिक अंत बताया ग
या है। अभिमन्यु महाभारत के नायक अर्जुन और सुभद्रा, जो बलराम व कृष्ण की बहन थीं, के पुत्र थे। उन्हें चंद्र देवता का पुत्र भी माना जाता है। धारणा है कि समस्त देवताओं ने अपने पुत्रों को अवतार रूप में धरती पर भेजा था परंतु चंद्रदेव ने कहा कि वे अपने पुत्र का वियोग सहन नहीं कर सकते अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए।

अभिमन्यु का अर्थ
अभि =निर्भय और मन्यु =क्रोधी होने से इस बालक का नाम अभिमन्यु रखा गया था। 


इसे श्रीकृष्ण, पाण्डव लोग और नगर निवासी भी बहुत चाहते थे। इसके जातकर्म आदि संस्कार श्रीकृष्ण ने किये थे। इनके चार भागों और दस लक्षणों से संयुक्त दिव्य तथा मानुष धनुर्वेद अपने पिता अर्जुन से सीखा था। यह ऊँचा, भरे कन्धों वाला, रोबीला और श्रीकृष्ण के समान शूर-वीर था। इसमें युधिष्ठिर की तरह धैर्य, श्रीकृष्ण की तरह स्वभाव, भीमसेन की तरह पराक्रमी, अर्जुन की तरह रूप और विक्रम, नकुल की तरह नम्रता और सहदेव की तरह शास्त्र ज्ञान था।
अभिमन्यु का बाल्यकाल अपनी ननिहाल द्वारका में ही बीता। उनका विवाह महाराज विराट की पुत्री उत्तरा से हुआ। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित, जिसका जन्म अभिमन्यु के मृत्योपरांत हुआ, कुरुवंश के एकमात्र जीवित सदस्य पुरुष थे, जिन्होंने युद्ध की समाप्ति के पश्चात पांडव वंश को आगे बढ़ाया। अभिमन्यु एक असाधारण योद्धा थे। उन्होंने कौरव पक्ष की व्यूह रचना, जिसे चक्रव्यूह कहा जाता था, के सात में से छह द्वार भेद दिए थे। अर्जुन, सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की विधि सुना रहे थे, अभिमन्यु ने अपनी माता की कोख में रहते ही अर्जुन के मुख से चक्रव्यूह भेदन का रहस्य जान लिया था पर सुभद्रा के बीच में ही निद्रा मग्न होने से वे व्यूह से बाहर आने की विधि नहीं सुन पाये थे। अभिमन्यु की म्रृत्यु का कारण जयद्रथ था जिसने अन्य पांडवों को व्यूह में प्रवेश करने से रोक दिया था। संभवतः इसी का लाभ उठा कर व्यूह के अंतिम चरण में कौरव पक्ष के सभी महारथी युद्ध के मानदंडों को भुलाकर उस बालक पर टूट पड़े, जिस कारण उसने वीरगति प्राप्त की। अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये अर्जुन ने सूर्यास्त से पहले ही जयद्रथ के वध की शपथ ली थी। यहाँ कृष्ण के चमत्कार से अर्जुन ने जयद्रथ का वध किया।

अभिमन्यु का वध
पांडवों की सेना अभिमन्यु के पीछे-पीछे चली और जहाँ से व्यूह तोड़कर अभिमन्यु अंदर घुसा था, वहीं से व्यूह के अंदर प्रवेश करने लगी। यह देख सिंधु देश का राजा जयद्रथ जो धृतराष्ट्र का दामाद था, अपनी सेना को लेकर पांडव-सेना पर टूट पड़ा। कौरव सेना के सभी वीर उसी जगह इकट्ठे होने लगे जहाँ जयद्रथ पांडव-सेना का रास्ता रोके हुए खड़ा था। शीघ्र ही टूटे मोरचों की दरारें भर गई। व्यूह को भेदकर अभिमन्यु ने जहाँ से रास्ता किया था, वहाँ इतने सैनिक आकर इकट्ठे हो गये कि व्यूह फिर पहले जैसा ही मज़बूत हो गया। जयद्रथ ने जिस कुशलता और ठीक समय से व्यूह की टूटी किलेबंदी को फिर से पूरा करके मज़बूत बना दिया उससे पाडंव बाहर ही रह गये। अभिमन्यु व्यूह के अंदर अकेला रह गया। पर अकेले अभिमन्यु ने व्यूह के अंदर ही कौरवों की उस विशाल सेना को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। जो भी उसके सामने आता, ख़त्म हो जाता था। दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण अभी बालक था, पर उसमें वीरता की आभा फूट रही थी। उसको भय छू तक नहीं गया था। अभिमन्यु की बाण वर्षा से व्याकुल होकर जब सभी योद्धा पीछे हटने लगे तो लक्ष्मण अकेला जाकर अभिमन्यु से भिड़ पड़ा। बालक की इस निर्भयता को देख भागती हुयी कौरव सेना फिर से इकट्ठी हो गई और लक्ष्मण का साथ देकर लड़ने लगी। सबने एक साथ ही अभिमन्यु पर बाण वर्षा कर दी, पर वह अभिमन्यु पर इस प्रकार लगी जैसे पर्वत पर मेह बरसता हो। अंततः अभिमन्यु ने लक्ष्मण पर भाला चलाया। केंचुली से निकले साँप की तरह चमकता हुआ वह भाला लक्ष्मण को जा लगा जिससे वह बालक तत्काल मृत होकर गिर पड़ा।

यह देख कौरव-सेना आर्त्तस्वर में हाहाकार कर उठी। दुर्योधन ने अपने सेनानायकों से कहा........"अभिमन्यु का तत्काल वध करो।" दुर्योधन, द्रोण, अश्वत्थामा, वृहदबल, कृतवर्मा और कर्ण आदि छः महारथियों ने अभिमन्यु को चारों ओर से घेर लिया। द्रोण ने कर्ण के पास आकर कहा..........."इसका कवच भेदा नहीं जा सकता। ठीक से निशाना बाँधकर इसके रथ के घोड़ों की रास काट डालो और पीछे की ओर से इस पर अस्त्र चलाओ।" व्यूह के अंतिम चरण में कौरव पक्ष के सभी महारथी युद्ध के मानदंडों को भुलाकर उस बालक पर पूरी निर्दयता से टूट पड़े, अपनी अंतिम साँस तक अभिमन्यु धर्म के लिये युद्ध लड़ता रहा, पीछे से प्रहार किये जाने के कारण वीर अभिमन्यु भूमि पर गिर पड़ा और फिर कभी नहीं उठा| इस धर्म युद्ध में अभिमन्यु ने वीरगति प्राप्त की|
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धन्य है भारतभूमि जिससे अभिमन्यु सरीखे शूरवीर और पराक्रमी पैदा हुए हैं........नमन है उस माता पिता को जिन्हें अभिमन्यु के माता पिता होने का गौरव प्राप्त हुआ| मित्रों पाप कितना ही बड़ा क्यू ना हो, उसका प्रतिकार करना जरुरी है क्योंकि ज्यादा झुकने वाले टूट जाया करते हैं| उम्मीद है आगे चलकर हम अपनी आने वाली पीढियों को अभिमन्यु जैसा वीर साहसी और निडर बनाने का प्रयत्न करेंगे| यही हमारी वास्तविक संस्कृति है|
......................धन्यवाद.................................
हर हर महादेव
जय हिंद जय भारत जय हिंदुत्व जय महाकाल

खर्राटे कुदरत का अलार्म


                                                     खर्राटे कुदरत का अलार्म


नींद में खर्राटे आना कई बार सामान्य होता है ,कई बार थकान के कारण खर्राटे आते है तथा कई बार यह लक्षण किसी गंभीर बीमारी के साथ जुड़ा हुआ होता है।60 % मनुष्यों में यह लक्षण उच्च रक्तदाब,सुगर,कोलेस्ट्रोल की अधिकता,ह्रदय
रोग जैसी बीमारियों के कारण पाया गया ।ऐसे व्यक्तियों को मक्खन,मलाई,पनीर,दही,केला,फ्रीज़ में रखा पानी या खाद्य,मिठाई,तले व चिकनाई वाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए ।दिन में सोना,एयर कंडीसन में रहना,सतत बैठे रहना छोड़ देना चाहिए ।खर्राटे आना यह कुदरत का अलार्म है ।कुदरत खर्राटो द्वारा मनुष्य को अपनी जीवन शैली ठीक करने की चेतावनी देती है ।ऐसे व्यक्ति आहार में सुधार के साथ नियमित आसन-प्राणायाम-कसरत करे और 20 ग्राम अदरक का रस (लगभग 4 छोटी चमच्च) में 5 ग्राम गुड मिलाकर सुबह खाली पेट 21 दिन तक ले ।आवशयक हो तो 5 दिन के अंतर से यह प्रयोग पुन दोहराया जा सकता है । इन दिनों में मिर्च,राइ,मैथी,हिंग जैसी गरम वस्तुवो का सेवन न करे ।



** जम्हाई रात्री को आती हो तो ठीक है परन्तु दिन में ज्यादा जम्हाइया आती हो तो निस्तेज और नीरसता की खबर देता है।वह भविष्य में होने वाली नर्व्हस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) सम्बंधित बिमारी का संकेत हो सकता है ।ऐसे लोगो को अदरक व लहसुन का सेवन वैधकीय सलाह से करना चाहिए ।

....................................................जय हिंद जय भारत .............................................................
आज डॉ. कलाम साहब का जन्म दिवस है,15 अक्तूबर, 1931, धनुषकोडी गाँव जो कि तमिलनाडु में है के एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में जन्मे कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेकनालजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक हो
ने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसलवी3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। अवुल पकीर जैनुलबीदीन अब्दुल कलाम को भारत सरकार द्वारा 1981 में प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान “गाइडेड मिसाइल” के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथवी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।
डाक्टर कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1997 में सम्मानित किया गया। 18 जुलाई, 2002 को डाक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया और उन्होंने 25 जुलाई को अपना पदभार ग्र्हण किया। इस पद के लिये उनका नामांकन उस समय सत्तासीन राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन की सरकार ने किया था जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सम्रथन हासिल हुआ था। उनका विरोध करने वालों में उस समय सबसे मुख्य दल भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी सहयोगी दल थे। वामपंथी दलों ने अपनी तरफ से 87 वर्षीया श्रीमती लक्ष्मी सहगल का नामांकन किया था जो सुभाषचंद्र बोस के आज़ाद हिंद फौज में और द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने योगदान के लिये जानी जाती हैं।
डाक्टर अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में से हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे क़ुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्यन करते हैं। कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरुक्कुराल का भी अनुसरण करते हैं, उनके भाषणों में कम से कम एक कुराल का उल्लेख अवश्य रहता है। राजनैतिक स्तर पर कलाम की चाहत है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका विस्तार हो और भारत ज्यादा से ज्याद महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढाते देखना उनकी दिली चाहत है। उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है और वे तकनीक को भारत के जनसाधारण तक पहुँचाने की हमेशा वक़ालत करते रहे हैं। बच्चों और युवाओं के बीच डाक्टर क़लाम अत्यधिक लोकप्रिय हैं।
ए पी जे अब्दुल कलाम के अनमोल विचार
: शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत चाहिए होती है, चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या आपके पेशे का.
:क्या हम यह नहीं जानते कि आत्म सम्मान आत्म निर्भरता के साथ आता है ?
: कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये.
: अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे.
: भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं. इश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है.
: महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं.
: अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो , मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.
: यदि हम स्वतंत्र नहीं हैं तो कोई भी हमारा आदर नहीं करेगा.
: आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके.
: आकाश की तरफ देखिये.
: इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं.
: किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया.
: अपने मिशन में कामयाब होने के लिए , आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा.
: इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे .
.............जन्मदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनायें.............................


गूगल विकिपीडिया से संकलित
द्वारा :- कुलदीप वर्मा
जय हिन्द जय भारत जय हिंदुत्व